Monday, May 25, 2009

मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही
तुम को इस वादी-ए-रँगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उलफत भरी रूहों का सफर क्या मानी
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तशरीर-ए-वफ़ा
तूने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली,
अपने तारीक़ मक़ानों को तो देखा होता
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तश्शीर का सामान नहीं
क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
ये इमारत-ओ-मक़ाबिर, ये फ़ासिले, ये हिसार
मुतल-क़ुलहुक्म शहँशाहों की अज़्मत के सुतून
दामन-ए-दहर पे उस रँग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ून
मेरी महबूब! उनहें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सानाई ने बक़शी है इसे शक़्ल-ए-जमील
उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ँदील
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्कश दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहँशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

आए न बालम बेदर्दी

सांझ की लाली सुलग-सुलग कर बन गई काली धूल
आए न बालम बेदर्दी मैं चुनती रह गई फूल
रैन भई, बोझल अंखियन में चुभने लागे तारे
देस में मैं परदेसन हो गई जब से पिया सिधारे
पिछले पहर जब ओस पड़ी और ठन्डी पवन चली
हर करवट अंगारे बिछ गए सूनी सेज जली
दीप बुझे सन्नाटा टूटा बाजा भंवर का शंख
बैरन पवन उड़ा कर ले गई परवानों के पंख

बरबाद मौहब्बत की दुआ साथ लिए जा

बरबाद मौहब्बत की दुआ साथ लिए जा
टूटा हुआ इक़रार-ए-वफ़ा साथ लिए जा
एक दिल था जो पहले ही तुझे सौंप दिया था
यह जान भी, ऎ जान-ए-अदा ! साथ लिए जा
तपती हुई राहों से तुझे आँच न पहुँचे
दीवानों के अश्कों की घटा साथ लिए जा
शामिल है मेरा ख़ून-ए-जिगर तेरी हिना में
यह कम हो तो अब ख़ून-ए-वफ़ा साथ लिए जा
हम जुर्म-ए-मौहब्बत की सज़ा पाएंगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वह ख़ता साथ लिए जा

नई दुनिया बसा लेते हैं लोग

जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन
सर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन
अब मौहब्बत भी है क्या एक तिजारत के सिवा
हम ही नादान थे जो ओढ़ा बीती यादों का कफ़न
वरना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते हैं लोग
जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था
दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी यह अहसास था
अब हैं पत्थर केसनम जिनको एहसास न ग़म
वो ज़माना अब कहाँ जो अहले दिल को रास था
अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग

कहाँ से लाऊँ

जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ
तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ
मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के
मेरी उम्र बह गई है मेरे आँसुओं में ढल के
जो बहार बन के बरसे वह घटा कहाँ से लाऊँ
तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है
तेरे दिल में ग़म ही ग़म है मेरे दिल में तू ही तू है
जो दिलों को चैन दे दे वह दवा कहाँ से लाऊँ
मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आहे बेअसर से
कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके दर से
जो मुराद ले के आए वह दुआ कहाँ से लाऊँ
जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ

अजब है दिल का आलम

रात भी है कुछ भीगी- भीगी, चांद भी है कुछ मद्धम-मद्धम
तुम आओ तो आँखें खोले, सोई हुई पायल की छम-छम
किसको बताएँ, कैसे बताएँ, आज अजब है दिल का आलम
चैन भी है कुछ हलका-हलका, दर्द भी है कुछ मद्धम-मद्धम
तपते दिल पर यूँ गिरती है, तेरी नज़र से प्यार की शबनम
जलते हुए जंगल पर जैसे, बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम
रात भी है कुछ भीगी-भीगी, चांद भी है कुछ मद्धम-मद्धम
होश में थोड़ी बेहोशी है, बेहोशी में होश है कम-कम
तुझ को पाने की कोशिश में दोनों जहाँ से खो गए हम
चैन भी है कुछ हलका-हलका, दर्द भी है कुछ मद्धम-मद्धम

हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें

ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ख़ामोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तरस रहे हैं जवाँ फूल होंठ छूने को
मचल-मचल के हवाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तुम्हारी जुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीख लेने को
झुकी-झुकी-सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें
हसीन चम्पई पैरों को जबसे देखा है
नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
मेरा कहा न सुनो, उनकी बात तो सुन लो
हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें

एक तू ही नहीं है

हर चीज़ ज़माने की जहाँ पर थी वहीं है,
एक तू ही नहीं है
नज़रें भी वही और नज़ारे भी वही हैं
ख़ामोश फ़ज़ाओं के इशारे भी वही हैं
कहने को तो सब कुछ है, मगर कुछ भी नहीं है
हर अश्क में खोई हुई ख़ुशियों की झलक है
हर साँस में बीती हुई घड़ियों की कसक है
तू चाहे कहीं भी हो, तेरा दर्द यहीं है
हसरत नहीं, अरमान नहीं, आस नहीं है
यादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं है
यादें भी रहें या न रहें किसको यक़ीं है

जब चाहा था

जब चाहा था मैंने
तुम्हे अपना बनाना
तुम दूर हो गई मुझसे
जब चाहा मैंने
तुम्हे बताऊँ करता हूँ मैं तुमसे प्यार
तुम सामने ही न आई
जब भी चाहा तुमसे बातें करूँ
तुम मुझे दिखाई ही न पड़ी
और जब तुम्हे न देखने की
चाहत पैदा की
तुम मेरी आंखो में बस गई
इतने दिनों बाद
कितने ही पलों को इन्तेजार में
बिताने के बाद
जब चाहा तुम्हे भूला दूँ
तुम वापस मेरी जिंदगी में आ गई
अब जब चाहता हूँ
मैं तुमसे बातें न करूँ
तुम ख़ुद ही मुझसे बातें करने लगी हो
एक बार फिर तुमने
उलझा दिया है मुझे
तुम्हे खोने या पाने के सवाल में...

तस्वीर.....

किसी ने पूछा था कभी मुझसे कि बताऊँ मैं उसकी तस्वीर कैसी है...
पहली बार देखा था उसे मैंने जब
लगा उसने ओढ़ रखा है सारा आकाश बदन पे अपने,
खुले बाल उसके बादलो से लग रहे थे,
और उसकी हंसी किसी अधखिले गुलाब सी,
नदियों में भी चंचलता क्या होगी,
पर्वत का भी वजूद क्या होगा,
उसके चेहरे कि चमक के आगे सच सूरज भी फीका होगा,
चाँद में शीतलता भी कम है,
रात की शांति भी कम है,
और आँखों में गहराई है इतनी,
कि सामने उसके समुन्दर भी कम है....
किसी कविता में भी इतने शब्द न होंगे
किसी तस्वीर में भी इतना रंग न होगा,
जो बांध सके खूबसूरती को उसके...
और सच सामने उसके जन्नत भी जमीं का धुल होगा,
गर है खुदा कहीं तो अब आके वही बताये मुझे,
कि क्या कोई तस्वीर भी उसकी,
उसके हुस्न से ज्यादा सुन्दर होगा?

ख्वाब....

कल रात नींद में एक ख्वाब देखा
किसी जन्नत में एक आफताब देखा
खूबसूरती उसकी बयाँ नहीं कर सकता मैं
खोजा तो बहुत पर चर्चे को एक भी शब्द नहीं देखा
सोंचा एक तस्वीर बना कर रखूँगा दिल के पास
पर एक भी रंग उसके लिए नहीं लाजवाब देखा
कल रात नींद में एक ख्वाब देखा......
उस हुस्न परी को मेरे पास देखा
उसका मुस्कुराना, थोडा नजरें झुका कर शरमाना देखा
दिल में कुछ बातें थी उसकी,
जो मैंने उसकी आँखों में देखा
उसका मुझपर ऐतबार और प्यार देखा
कल रात नींद में एक ख्वाब देखा.....
और आज जागती आँखों से उसे हकीकत में देखा
फर्क इतना था कल रात नींद में ख्वाब देखा
और आज वो खुद मुझे एक हसीं ख्वाब दिखा....

क्यों आख़िर क्यों....

क्यों आख़िर क्यों
तुझसे इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं
खुदा को मानता नही
और फ़िर भी
तुझे खुदा की मन्नत मानता हूँ मैं
इन्तजार से नफरत है मुझे सबसे ज्यादा
और फ़िर भी
हर पल तेरे इन्तजार में जीता हूँ मैं
क्यों आख़िर क्यों
तुझसे इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं
तन्हाई से डरता हूँ बहुत
और फ़िर भी
तन्हा ही जीता हूँ मैं
चाहता हूँ तुझे दूर कर दूँ ख्यालों से अपनी
और फ़िर भी
तुझे हर वक्त याद करता हूँ मैं
आँखों से तो अश्क बहना चाहते है बहुत
और फ़िर भी
जोर-जोर से हमेशा हँसता हूँ मैं
क्यों आख़िर क्यों
जानते हुए तू मुझसे प्यार नही करती
और फ़िर भी
तुझसे इतनी.... इतनी मोहब्बत करता हूँ मैं...

मैं और मेरी तन्हाई...

मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर ये बातें करते है
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
पर सच कहूँ?
मैं और मेरी तन्हाई
कभी कोई बातें नही करते
मैं कभी तन्हा होता ही कहाँ
तुम्हारी याद मुझे कभी
तन्हा होने ही नही देती है
तुम्हारी याद कभी
तेरी याद आने नही देती है
वरना......
मैं और मेरी तन्हाई भी
अक्सर बातें करते

मुझे तुझसे प्यार है...

जिन में हो तेरी खुशी
उन जख्मों का भी मुझे इन्तेजार है,
करने को सांझ तेरी रौशन
मैं ख़ुद जलने को भी तैयार हूँ
अगर हो बसी खुशबू तेरी
पतझर भी मेरी बहार है
तेरे खुशियों पर तो हक नही मेरा
तेरे ग़मों पर तो मेरा अधिकार है
एक गुजारिश है
तू न कभी बदलना जीवन के किसी मोड़ पर
मुझे तो तेरे इसी रूप से प्यार है
तू करती है नफरत मुझसे
नफरत ही किया करना,
हो सके तो हद से बढ़कर करना
मुझे तो तेरे नफरत से भी बे-इन्तिहाँ प्यार है
गर तू कभी बदल गई
तो शायद मुश्किल होगी मेरे लिए
किसी दिन अगर तू मेरे पास आई दोबारा
तो मैं मरने के लिए अभी कहाँ तैयार हूँ
मैंने तो कसम ली है तेरे प्यार में ही जीने की
मुझे तो तेरा अपनी अन्तिम साँसों तक इन्तेजार है
तेरी खुशी के लिए जख्म
तेरी रौशनी के लिए जलने को
खुशबू अगर हो तो पतझर
तेरे ग़मों से भी मुझे प्यार है
हाँ मुझे सिर्फ़ तुझसे, सिर्फ़ तुझसे ही प्यार है....

Saturday, May 23, 2009

तुम्हारे नाज किसी और से तो क्या उठते
खता मुआफ ये पापड़ हमीं ने बेले हैं
- अन्जुम फौकी
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझको छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
- वफा रामपुरी
गरज कि काट दिए जिन्दगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हो या तुझे भुलाने में
- फिराक गोरखपुरी
ऐ इश्क तूने अक्सर कौमों को खा के छोड़ा
जिस घर से सर उठाया उसको बिठा के छोड़ा
- हाली
हम अक्सर दोस्तों की बेवफाई सह तो लेते हैं
मगर हम जानते हैं दिल हमारे टूट जाते हैं
- रोशन नंदा
बेवफा भी हो सितमगर भी जफा पेशा भी
हम खुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही
- मुमताज मिर्जा
आप को भूल जायें हम इतने तो बेवफा नहीं
आप से क्या गिला करें आप से कुछ गिला नहीं
- तस्लीम फाज्ली
हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया
- हरीचंद अख्तर
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनियावाले, दिलवालों को और बहुत कुछ कहते हैं
- हबीब जालब
ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू संवारे
मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती
- आगा हश्र
अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे
- अहमद हमदानी
न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में
वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे
- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
- अहमद फराज
काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें
- अख्तर शीरानी
पहलू से दिल को लेके वो कहते हैं नाज से
क्या आएं घर में आप ही जब मेहरबां न हों
- मौलाना मुहम्मद अली जौहर
तुम्हारी बेखुदी ने लाज रख ली वादाखाने की
तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहां जाते
- शकील बदायूंनी
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा
- दुष्यंतकुमार
अक्ल पे हम को नाज बहुत था लेकिन ये कब सोचा था
इश्क के हाथों ये भी होगा लोग हमें समझायेंगे
- अहमद हमदानी
ऐसे मौसम भी गुजारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी
- परवीन शाकिर
तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-मरहूम के लिए
कम्बख्त नामुराद लड़कपन का यार था
- बेखुद देहलवी
बराये नाम सही कोई मेहरबान तो है
हमारे सर पे भी होने को आसमान तो है
- अकील शादाब
इस तरह सताया है परेशान किया है
गोया कि मुहब्बत नहीं अहसान किया है
- अफजल फिरदौस
गम मुझे, हसरत मुझे, वहशत मुझे, सौदा मुझे
एक दिल देके खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
- सीमाब अकबराबादी
दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गों का जमाना नहीं भूले
- सागर आजमी


कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है
रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
- शकील बदायूंनी
ये आरजू ही रही कोई आरजू करते
खुद अपनी आग में जलते जिगर लहू करते
- हिमायत अली शायर
ये शबे फिराक ये बेबसी, हैं कदम-कदम पे उदासियां
मेरा साथ कोई न दे सका, मेरी हसरतें हैं धुआं-धुआं
- हसन रिजवी
हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया
- सैफुद्दीन सैफ
हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे
शीशा न सही पत्थर भी न था दिल टूट गया धीरे - धीरे
- कैसर उल जाफरी

Friday, May 22, 2009

चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दर्द दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,
मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।
चलते चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,
एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दरिया हुँ , बेहता ही रहा ,
तुफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं