Monday, June 8, 2009

जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?

इतनी हसीन, इतनी जवाँ रात, क्या करें ?
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?
पेड़ों के बाजुओं में महकती है चांदनी
बेचैन हो रहे हैं ख़यालात क्या करें ?
साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
दामन को छू रहा है कोई हाथ क्या करें ?
शायद तुम्हारे आने से यह भेद खुल सके
हैराँ हैं कि आज नई बात क्या करें ?

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