Monday, June 8, 2009

हाय ! किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए नाशाद आया
कितने भूले हुए जख़्मों का पता याद आया
आप के लब पे कभी अपना भी नाम आया था
शोख नज़रों से मुहब्बत का सलाम आया था
उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था
आपको देख के वह अहद-ए-वफ़ा याद आया
रुह में जल उठे बजती हुई यादों के दिए
कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के लिए
यूँ तो कुछ कम नहीं जो आपने एहसान किए
पर जो मांगे से न पाया वो सिला याद आया
आज वह बात नहीं फिर भी कोई बात तो है
मेरे हिस्से में यह हलकी-सी मुलाक़ात तो है
ग़ैर का हो के भी यह हुस्न मेरे साथ तो है
हाय ! किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया

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