skip to main
|
skip to sidebar
Monday, June 8, 2009
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
universal love
Followers
Blog Archive
▼
2009
(66)
►
August
(1)
▼
June
(44)
मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना
जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया
तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक
रुलाया था बहुत तुमने, जो मेरे दिल को तोड़ा था
दिल की मेरी बेक़रारी मुझ से कुछ पूछो नहीं
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में
ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
वो भी आख़िर मिल गया अब क्या करें
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
No title
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है
शेर कहती हुई आँखें उस की
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
पूछ न मुझसे दिल के फ़साने
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह
रात के ख्वाब सुनाए किस को रात के ख्वाब सुहाने थे|
सावन-भादों साठ ही दिन हैं फिर वो रुत की बात कहाँ
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे
हाय ! किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?
ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
मैकदे में कोई छोटा न बड़ा, जाम उठा
मैकदे में कोई छोटा न बड़ा, जाम उठा
छोड़ो मेरी राम कहानी मैं जैसा भी हूँ अछा हूँ
इस धूप किनारे पल दो पल
तुमने मुड़ कर भी न देखा तो कोई बात नहीं!
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
‘नई ज़मीं, नया आस्मां, नई दुनिया’
उसी तरह से हर इक ज़ख़्म खुशनुमा देखे
अक्स उसीका आया होगा।
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
वो सुबह कभी तो आएगी
चाँद मद्धम है आस्मां चुप हैनींद की गोद में जहां चु...
सोचता हूँ कि मुहब्बत से किनारा कर लूँदिल को बेगाना...
ज़ख़्म जो आप की इनायत है इस निशानी को नाम क्या दे ...
ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागेकिसे क्या ख़बर है...
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगीहर शय जहाँ हसी...
►
May
(21)
About Me
Anurag
View my complete profile
No comments:
Post a Comment